मेरी सीख - My lifes learning

कोख से निकलते जिंदा होने के दर्द को सीखा,
पैदा होते ही माँ की ममता और दुलार को सीखा,
पालने मे लेटे दूसरों को ख़ुशी देनेवाली खिलखिलाहट को सीखा.

पिता के उड़ान-पकड़ में दूसरों पे विश्वास करना सीखा,
बालपन बीता बुजुर्गों से उच्छा संस्कार पाने मे,
भाई बहन और दोस्तों से नटखटी शरारतों को सीखा.

पाठशाला में अध्यापकों से विद्या ग्रहण करना सीखा,
विश्वविध्यालय में विद्या से ज्ञान पाना सीखा,
खेल कूद में कपटी खिलाडियों के तोड़ मोड़ जोड़ सीखा.

महाग्रंथों से सदाचार के महत्व सीखा,
धार्मिक सहचारियों से भक्तिभाव सीखा,
गुरु-सार्वभौम के जीवनसार से जीवन का तात्पर्य सीखा.

यौवन पहुंचते ही प्रेम रोग से बचना सीखा,
अध्-यौवन में निष्ठा तथा लगन से काम करना सीखा,
अति यौवन में देश भ्रमण से अनेक संस्क्रिथिया सीखा.

विवाह पश्चात गृहस्थ जीवन का आनंद लेना सीखा,
ग्रहस्थी बनकर जिम्मेदारियों से नाता जोड़ना सीखा,
बच्चे के परवरिश में आदर सत्कार का भूमिका सीखा.

बुजुर्गों के निधन पर शोक ग्रस्त की भाषा सीखा,
पिता के गुजरने के बाद खटकती अकेलेपन क्या होती है यह सीखा,
कुछ दिन पश्चात इस अकेलेपन से झूँझ्ना भी सीखा.

लोगो के बदलते षड्तंत्री रूप पढ़कर खुद को संभालना सीखा,
हर पल जीवन के हर मोड़ पर कुछ न कुछ तो है सीखा,
सीखने का कोई अंत तथा आयु नहीं ये भी मैंने है सीख.

इतना कुछ तो सीखा हमने की एक बार अहंकार से इठलाया,
भगवान इस कांच की दिवार हटाके हमें भू-स्पर्श करवाया,
और जिंदगी सबसे उत्तम गुरु होती है ये ज्ञात हमें दिलाया.

जिंदगी की इस खेल में होना है मुझे पास,
अब हाथ पकडे चल रहा हूँ जब तक तन में सांस,
एक हाथ में माँ का आशीर्वाद दूसरे में भगवन पर अटूट विश्वास .

चलना हमने ऐसे ही सीखा ये याद हमको है आती,
अब ज्ञात हो रहा है "इतिहास हमेशा है दोहराती".
संभव नहीं आज जिंदगी के इस राह से भटकेंगे हम,

क्योंकि ब्रम्हांड चलाने वाले के हाथ पकडे है हम.

1 comment: