Dharma Dwaj _ The Identity of Bharat

 Dharma Dwaj

मैं कोई हरा पत्ता नहीं सूखी पेड़ की डाली पे
न मैं श्वेत कफ़न का कपड़ा ओढ़ा गया निर्जीव पे
जैसे सेंधूर चढ़ाया हो तांबे-सोने-चांदी मिश्रित पे
ऐसे भग्वा रंग ढल गया सनातन धर्म के स्वरूप पे

लहराता आगे चल रहा था राम जी के अभियान में
वानरों में साहस भर दिया युद्ध के भीषण काल में
असुरों को काल दिख गया इस ध्वज के फहराने में
रावण भी टिक न सका इस ध्वज आरोहित रण भूमि में

कुरुक्षेत्र के युद्ध में इसे थामा था हनुमान ने
प्राण उर्जीत कर दिया उस पर श्री कृष्ण के गान ने
प्रेरणा देता अर्जुन को अधर्मियों को सम्हारने
धर्म विजय का प्रतीक बना सारे विश्व के सामने

सशक्त है तू सबल है तू निर्भयता से खड़े रहना
निष्ठा बद्ध शिष्ठ आचरण विनम्रता से काम करना
मातृ पितृ राष्ट्र गुरु व धर्म हेतु सदा इन्हें सम्मान देना
मुख से वेद आंखों से नम्रता हाथ में मुझे थामे चलना

जो भी धारण करता मेरी सीख धन्य करदू मैं उसे
विजय तिलक सदा प्राप्त होगा मेरे आशीर्वाद से
आया मैं मां भारती के आंचल के पावन हिस्से से
भग्वा नाम मेरा जुड़ गया भगवान शब्द के प्राण से

सनातन धर्म का प्रतीक हूं धर्म ध्वज कहलाता हूं
हर पावन अवसर पर मैं हमेशा ही लहराता हूं
मंदिर का शिखर या तिरंगे मैं सबसे ऊपर बस्ता हूं 
हर परिस्थितियों में मैं देश वासियों में जान फूंखता रहता हूं

धर्म ध्वज हूं धर्म ध्वज हूं मां भारती का शान हूं
धर्म ध्वज हूं धर्म ध्वज हूं हर भारतीय का प्राण हूं
धर्म ध्वज हूं धर्म ध्वज हूं अधर्मियों का काल हूं
धर्म ध्वज हूं धर्म ध्वज हूं सुख शांति का पैगाम हूं 
धर्म ध्वज हूं धर्म ध्वज हूं हिंदुत्व की पहचान हूं
धर्म ध्वज हूं धर्म ध्वज हूं गुरुओं का आशीर्वाद हूं 
धर्म ध्वज हूं धर्म ध्वज हूं संयासियों का मान हूं
धर्म ध्वज हूं धर्म ध्वज हूं मैं हमेशा आपके साथ हूं