How can you enjoy Bliss when you're habituated to Pain - ज़िन्दगी दुःख की आदी

जापान पर गिराए परमाणु बम्ब  तो दुनिया देहल गईं
ना नस्ल बची न फसल उगी बची तो सिर्फ दर्दनाक यादें।
मुझपे इतने प्रहार हुए तो डोर जीवन की छूट गई
ना आस रही डेमी सांस रही और रही कुछ अनकही  बातें।

उफ़ तक ना करसके हम ज़माने के डर से
जब रोंधकर चल दिए काफिर अपने मन को।
आत्मा रोई पर न टपके बूंद आंखों से
मन का दुःख कम करने सहलाते रहे अपने आप को।

तोडा दिल किसीने और अरमानों का ठत्मा किया
खुशियां लूट ली कईयोंने दुखों का बौछार दिया।
भरोसेमंद वालों का भी तो रंग बदल गया
खुशहाल जीनेवाले राजा को रंक बना दिया।

हर दिन गुज़र जाते हैं गहरे घाव को सहलाते
ना किसीको इनकी खबर ना किसीको हम बताते।
बस हादसों को याद कर हम अपना मन रिझाते
मन बेचारा क्या करे जब उसे ही हम दबाते।


अब ऐसी है ज़िन्दगी जैसे लगी हो महामारी 
सब जल कर भस्म हुई ना प्यार बचा ना प्यारी। 
रब नर्क में मुझे दाल दें बिना किसी माफ़ी 
स्वर्ग सुख कैसे जियेंगे जब दर्द का हूँ आदी। 


Written on : 21st Jan 2006

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