On the eve of Shivaji's Maharaj's 392nd Birth Anniversary (19th Feb 2022), It occurred to me to depict his greatness in words as a work of dedication to enliven and relive those moments of history of achievements that this undefeatable king achieved. What this youngest hero achieved by the time he was 19 is an unsurmountable fact that has been kept under covers of Indian history for ages. He was one of the greatest protectors of our Hindu People and the Sanatana Culture which still runs in the veins of true Marathas & Sanatani's even to this day. This poem is an effort to wake up the young Shivaji's latent in the various parts of the country as it is the need of the hour to again have someone to uphold Hinduism.
Hopefully my this small effort will pay off .....
वक्त ऐसा था हिंदुओं को काफिर कहकर मार दिया करते थे
हिंदुस्तान की छाती को घोंप उनका हरा झंडा लहराया करते थे
अनेकों बेवा बहु और बेटियों को हवस का शिकार बनाते थे
इसे देख हर रास्ता, गलि, चौबारे पर मंदिर में भगवान रोते थे
लाखों के बहते आंसुओं का कोई मोल नहीं था उस वक्त
क्योंकि आदम खोर बैठ गया था छीन कर भारत का तख्त
विधर्मियों ने धर्म के नाम पर नित्य जुल्म ढाए अती सख्त
त्राहि त्राहि कर रहे थे पूछते भगवान इस से करो हमे मुक्त
दिल्ली से चली ये आंधी दक्षिण भारत के द्वार खटखटाने को
तब उठी एक माँ की आत्मिक पुकार अपने भगवान को उठाने को
गर्भ सिखावत तीव्र साधना कर रही थी पराक्रमी पुत्र पाने को
नौ मास बाद पहुंची प्रजा जीजा पुत्र पर आशीर्वाद न्योछावरने को
मुख पर तेज आंखों में कांति शोभित वर्ण लोभित मुस्कान
स्वर्ण बाजूबंद व पैंजनी अलंकृत असाधारण शिशु है बलवान
प्रजा के सभी मातृ गण ने माँं व शिशु का किया सम्मान
माँ बोली रक्षक बनकर मेरा ये पुत्र करेगा हिंदुओं का कल्याण
माँ सुनाती नित्य शिशु को लोरी नही वीर गाताओं का गान
उसमे था धैर्य पराक्रम राम जी का कृष्णामृत गीता का ज्ञान
शिव की शक्ति गणेश की भक्ति और अम्बा मां का कार्य महान
शिशु निखर कर बना शिवाजी मराठाओं का श्रेष्ठ संतान
राजनीती का पाठ सीखा शाहजी और मां जीजा से
शस्त्र विद्या, रणनीति निपुणता पाई दादा कोंडदेव से
धर्म शास्त्र का ज्ञान ग्रहण किया गुरु समर्थ रामदास से
अपराजित खड्ग प्राप्त की माता तुलजा भवानी से
सोलह वर्ष के बालक थे शिवाजी जब बीजापुर से तोरण किला हथियाई थी
दो साल में चाकण, कोंधना, सुपा, बारामती, इंदापुर, पुरंधर पर जीत पाई थी
अनेकोनेक छोटे किले कोंकण कल्याण को भी अपने शरण में लेली थी
तोरण के खजाने से अपना खुद का सशक्त महफूज रायगढ़ किला बनवाई थी
पच्चीस साल की आयु तक दक्षिण भारत पर केसरी ध्वज को शान से लहराया
इसे सहन न कर आदिलशाही बेगम ने अफजल खान को है भिजवाया
निर्दोषियों पर अत्याचार करते तुलजा विट्टोबा मंदिर अफजल रोंदते आया
उसकी छल-जकड़ काम न आई शिवाजी के बाघ नाकून से वो मारा गया
तत्क्षण अफजल की सेना को खदेड़ दिया प्रतापगढ़ के किले से
पन्हळा पर विजय प्राप्त की रुस्तम जमान और फज्ल खान को हराने से
तीन सौ मराठे घोड खिंड में भीड़ गई सिद्धि जौहर की हजारों सैनिकों से
डटे रहे वो जब तक शिवाजी विशालगढ़ पहुंचकर बताये तोप की गूंज से
आदिलशाही बेगम बिलबिला उठी मांगी औरंगजेब से भेजो शाइस्ता खान को
डेढ़ लाख सैनिक लेकर पुणे फतेह कर शाइस्ता ने झिंझोड़ दिया शिवाजी को
उसी रात को तीन सौ मराठे तितर बितर कर दिए विशाल मुघलों की सेना को
शिवाजी ने इस अचानक प्रहार से भागते शाइस्ता की काटी उंगलियों को
इस शिकस्त से औरंगजेब को बड़ी शर्मिंदगी उठानी पड़ी
जय सिंह व अनेक राजपूतों को समर आज्ञा दी उसी घड़ी
शिवाजी ने उस से संधि की क्योंकि मराठों पर थी संकट बड़ी
और अनेक जीते हुए किलों को औरंगजेब को उन्होंने लौटा दी
आगरा बुलाकर औरंगजेब ने शिवाजी को छल से गिरफ्तार किया
न भाग सके कारागार से उनपर कड़क निगरानी रखवा दिया
एक दिन जब बाप बेटे ने सुरक्षित निकल जाने का मौका पाया
फल मिठाई टोकरी से दोनो औरंगजेब के गिरफ्त से निकल गया
फिर से पाए शिवाजी ने सभी किले तलवारों की नोक पर
फिर विश्राम ली उन्होंने एक विशाल साम्राज्य को बनाकर
उनके राज्य में सुख समृद्धि थी शांति और किसीको नही था डर
हिंदू भी अब स्वाभिमान से रेहते और कभी न झुकाए अपना सर
हर प्रांत के नागरिक तो उन्हे शिव जी का अवतार लगे मान ने
धर्मोधारक नाम कमाये विशाल राज्य के छत्रपति महाराज बने
सशक्त मराठा सेना से अब पड़ोसी राज्य रक्षा को लगे पुकारने
थर थर कांपते थे विधर्मी जब आए शिवाजी सेना के सामने
पेशावर से तंजावुर तक और अहमदाबाद से कटक तक शिवाजी का राज्य फैला था
अपनी भविष्यवाणी पूरा हुआ देख माँ जीजा का मन संतुष्ट और तृप्त हुआ था
जब तक मिलने आते शिवाजी माँ जी का आत्म स्वर्ग को प्रस्थान कर चुका था
दुखी अनारोगी बने महाराज जी क्योंकि माँ से बिछड़ने का गम उन्हे सताता
22 Mar 1680 का वो दिन था शिव बा निःशक्त दिखाई दिए
तीव्र ज्वार और दस्त ने उन्हे बारह दिन से जैसे जकड़ लिए
फिर आई वो मनहूस दिन 3 April 1680 जब शिव बा दवाई की गूंट पिए
अनारोग्य से नही पर मन के दुख तो शिव बा अपने चेहरे से न निकाल पाए
दिन चढ़ते चढ़ते बारह बज गए तब दुनियां आंखों से ओझल होने लगी
ऐसा लगता था की शिव बा की आत्मा मां तुलजा को पुकारने लगी
शायद मां का स्पर्श पाकर शिव बा के प्राण इस लोक से परलोक भागी
मृत शरीर पर सूरज तारे चंद्रमा और रायगढ़ प्रजा के आंसू के धार बहने लगी
शूर वीर पराक्रमी धैर्य और साहस के प्रतीक थे
मन से दृढ़ वाच में मृदु मानवता के रत्न थे
माँ स्त्री व गुरु प्रति आदर हिंदू धर्म के रक्षक थे
मराठों में न भूतो न भविष्यति ऐसा सम्राट जन्मे थे
माता पिता गुरु का हाथ थामे बढे वो हिंदुत्व को सवारने
कोई भी विधर्मी आतंकी से सदा भारत देश को बचाने
और माँ भारती का सपूत बनकर खड़े वो सीना ताने
शिवाजी महाराज की जय !!
मां तुलजा भवानी की जय !!
विट्टोबा महाराज की जय !!
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